moral मंत्र क्रोध की आग
एक गाँव के शिष्य की शिक्षा पूरी हो गयी ! जाने से पहले संत ने उसकी हर तरह से परीक्षा ली लेकिन एक महतवपूर्ण परीक्षा बाकी रह गई थी !जब शिष्य ने जाने की आज्ञा मांगी तो संत ने उसे कुछ दिन और रुकने को कहा ! शिष्य संत की सेवा करता रहा ! एक दिन संत ने कुटिया में धूनी जलाकर रख दी और कुछ देर बाद शिष्य से कहा , 'पुत्र धूनी से कुछ आग निकलकर दे दो !' शिष्य ने आग कुरेदकर देखा और कहा , ' गुरूजी , धूनी में आग नहीं है !' संत ने फिर कहा की मुझे तो धूनी में आग दिख रही है , इसी में से आग निकालकर दो ! शिष्य ने धूनी को फिर कुरेदा लेकिन धूनी तो पूरी तरह बुझ चुकी थी ! वह फिर बोला , ' गुरूजी इसमे जरा भी आग नहीं है ! ' संत बार बार दोहराते रहे की इसमे आग है और शिष्य भी विनम्रता पूर्वक कहता रहा की नहीं है ! पूछने और मना करने का यह क्रम बीस बार तक चला ! अंत में शिष्य को गले से लगते हुए कहा , ' तुम आखिरी परीक्षा में भी उत्तीर्ण हुए हो ! मै तो यह जाँच रहा था कि क्या तुम्हारे भीतर क्रोध की थोड़ी आग अभी भी बची हुयी है ? मगर तुमने तो उस पर पूरी तरह से विजय प्राप्त कर ली है !' संत ने शिष्य को आशीर्वाद देकर विदा कर दिया !
एक गाँव के शिष्य की शिक्षा पूरी हो गयी ! जाने से पहले संत ने उसकी हर तरह से परीक्षा ली लेकिन एक महतवपूर्ण परीक्षा बाकी रह गई थी !जब शिष्य ने जाने की आज्ञा मांगी तो संत ने उसे कुछ दिन और रुकने को कहा ! शिष्य संत की सेवा करता रहा ! एक दिन संत ने कुटिया में धूनी जलाकर रख दी और कुछ देर बाद शिष्य से कहा , 'पुत्र धूनी से कुछ आग निकलकर दे दो !' शिष्य ने आग कुरेदकर देखा और कहा , ' गुरूजी , धूनी में आग नहीं है !' संत ने फिर कहा की मुझे तो धूनी में आग दिख रही है , इसी में से आग निकालकर दो ! शिष्य ने धूनी को फिर कुरेदा लेकिन धूनी तो पूरी तरह बुझ चुकी थी ! वह फिर बोला , ' गुरूजी इसमे जरा भी आग नहीं है ! ' संत बार बार दोहराते रहे की इसमे आग है और शिष्य भी विनम्रता पूर्वक कहता रहा की नहीं है ! पूछने और मना करने का यह क्रम बीस बार तक चला ! अंत में शिष्य को गले से लगते हुए कहा , ' तुम आखिरी परीक्षा में भी उत्तीर्ण हुए हो ! मै तो यह जाँच रहा था कि क्या तुम्हारे भीतर क्रोध की थोड़ी आग अभी भी बची हुयी है ? मगर तुमने तो उस पर पूरी तरह से विजय प्राप्त कर ली है !' संत ने शिष्य को आशीर्वाद देकर विदा कर दिया !
मन्त्र : क्रोध की आग को अन्दर ना पलने दें ! यह दूसरो से अधिक आपको स्वयं को भीतर से जलाती है !